Friday, October 25, 2019

study websites for students

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वर्तमान  में आनलाइन एजुकेशन का स्तर बढ़ता ही जा रहा है  घर बैठे दुनिया भर की स्कुलों, यूनिवर्सिटी का पाठयक्रम घर बैठे मिल जाता है और विडियो कलास माध्यम से अच्छे से अध्ययन करवाया जाता है सकते है साथ ही उच्च गुणवत्ता वाले अध्यापको के द्वारा अपनी विषय वस्तु संबंधित सोल्युशन भी करवा सकते है. इंटरनेट पर कुछ ऐसी वेबसाइट है जो आॅनलाइन स्टेडी करने वाले विद्यार्थीयों के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती है.



coursera

यदि आप घर बैठे आनलाइन पढ़ना चाहते हो तो यह वेबसाइड आपके लिए है इस वेबसाइड पर विश्व की बड़ी यूनिवर्सीटी के के प्रशिक्षको द्वारा अध्यापन करवाया जाता है, यहा आप अपनी सुविधा अनुसार कोई भी पाठयक्रम चुन सकते है तथा उससे संबंधित अध्ययन सामग्री नोट्स विडियों क्लास आदि सुविधाएं उपलब्ध है, साथ ही पाठयक्रम पुरा होने पर आपको एक प्रमाण पत्र भी दिया जाता है। इस पर हर रोज कुछ न कुछ नये सीख सकते है. https://www.coursera.org



इस वेबसाईट पर चालीस हजार से अधिक पाठयक्रम मौजुद है इसका मतलब ये है की यहाँ पर स्कुली स्तर से काॅलेज स्तर का हर प्रकार का पाठयक्रम मिल जायेगा जैे एम्स जेईई विधि फाईनेशियल फैशन डिजाईनर आदि इसके अलावा अच्छी शिक्षा हेतु विदेशी पाठयक्रम को भी उपलब्ध करवाया गया है एक्सपर्ट की सलाह ले सकते है सवाल जवाब कर सकते है. https://www.shiksha.com/



आॅनलाइन एजुकेशन के लिहाज से ये काफी अच्छी वेबसाइट है यहाँ पर कक्षा 1 से 12 तक आॅनलाइन पढ़ सकते है इस वेबसाइट लगभग 35 मिलियन लोग जुड चुके है ै यहाँ पर विषयवार अनुसार एक्सपर्ट द्वारा विडियों तैयार किये गये जो आपके लिए काफी मददगार हो सकते है इसके अलावा यहा पर free and paid  दोनों प्रकार के कोर्स मिल जायेगे जिनमें CBSE, ICSE, CAT, IAS, JEE, NEET, COMMERCE, JEE MAIN, JEE ADVANCED NCET ETC है यह भारत की सबसे ज्यादा पंसद की जाने वाली वेबसाइटों में से एक है. https://byjus.com/



कंप्पीटिशन एग्जाम की तैयारी कर रहे स्टुडेन्ड के लिए ये काफी उपयोगी सिद्ध हो सकती है यहाँ पर तैयारी हेतु अध्ययन सामग्री मिल जायेगी रोजाना करंट अफेयर्स, लेख अभ्यास प्रश्नोत्तर कक्षा नोट्स आदि मौजुद है तथा राज्य व राष्ट्रीय स्तर की नौकरीयों की तैयारी कर सकते है अपने करियर हेतु मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते है. https://aglasem.com/



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कंपीटीशन की तैयारी करने वाले स्टूडेंट के लिए अच्छा प्लेफाॅर्म है जेईई, एमबीबीएस, यूपीएससी, बीपीएससी, एसएसी आदि तैयार कर सकते है यह एक एसा मंच उपलब्ध करवाती है जहाँ पर कोई भी छात्र कोई भी प्रश्न या टाॅपिक पर विशेषज्ञ की सलाह ले सकता है. https://www.pagalguy.com/



यदि घर बैढ़े आनलाइन पढ़ाई करने चाहते है तो यह वेबसाइड बहुत ही अच्छी वेबसाइड हो सकती है इस वेबसाइट पर स्कुली पाठयक्रम से विश्वद्यिालय तक का पाठयक्रम मिल जायेगा इसके अलावा कंपीटिशन एग्जाम की तैयारी घर बैठे कर सकते है जिसके अंतर्गत नीट, एम्सस जेईई एंडवांस यूपीएससी, पीसीएस ग्राफिक डिजाइन कंप्युटर लेगवेज आदि बहुत सारे सलेबस मौजुद है जिनका अध्ययन घर बैठे कर सकते है. http://www.indiaeducation.net/



यह शिक्षा और सीखने का विश्वसनीय मंच है, हार्वर्ड और एमआईटी द्ववारा स्थापित मकग 20 मिलियन से अधिक शिक्षार्थियों के लिए घर है, वैश्विक गैर लाभकारी के रुप में मकग  पांरपरिक शिक्षा को बदल रहा है, मांग को पूरा करते है हुए मगक शिक्षा की संभावनाओं को फिर से परिभाषित कर रहा है, उच्चतम गुणवत्ता वाले स्टैकेबल लर्निग अनुभव प्रदान कर रहा है जिसमें ग्राउंब्रेकिंग माइ्रक्रोमास्टर्स कार्यक्रम शामिल है रह चरण में शिक्षार्थियों का समर्थन करना चाहे नौकरी के बाजार में प्रवेश करना खेतों में बदलना एक पदोन्नति की तलाश करना या नए हितों की खोज करना यह वेबसाइट कंप्युटर विज्ञान से लेकर संचार तक विषयों तक का पाठ्यक्रम प्रदान करता है। यह एक ओपन एडएक्स एक ओपन सोर्स प्लेटफार्म है जो एडएक्स पाठ्यक्रमों को अधिकार देता है. https://www.edx.org/



यह आॅनलाइन एजुकेशन के लिए काफी अच्छी वेबसाइड यहा पर तकरीबन 15 भाषाओं में सांइस, कोमर्स आर्ट्स की आॅनलाइन क्लाश उपलब्ध है यहा पर विडियों क्लाश के माध्यम से अध्ययन करवाया जाता है तथा नोट्स तैयार करने की सुविधा भी उपलब्ध है. https://cosmolearning.org/



यहाँ पर विज्ञान तकनीकी ज्ञान, कामर्स, आर्ट्स व अन्य पाठ्यक्रमों पर बहुत ही अच्छी तरह से बताया गया समझाया गया है जो विडियों के माध्यम बहुत ही शानदार तरिके से हर क्षेत्र के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध है.  https://thefutureschannel.com/#loaded



येल विश्वविद्यालय के एक्सपर्टों द्वारा पाठयक्रम हेतु छात्र, छात्राओं को एक खुला मंच प्रदान करता है तथा अपनी शैक्षणिक योग्यता का विकास कर सके. https://oyc.yale.edu







Wednesday, October 23, 2019

Best Logo Website

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बनाईये एक शानदार प्रोफेशनल लॉगों

जब हम अपना खुद का स्टार्ट अप शुरु करते है अपना व्यवसाय शुरु करते है चाहे वह कोई कंपनी हो या फिर कोई ऑनलाइन प्लेटफोर्म के जरिये अपना व्यक्तिगत बिजनेस चालू करते है तो हम एक लॉगो के बारे में विचार जरुर करते है लॉगो भी ऐसा जो अपने ब्राड को उचा रख सके अर्थात् उस लॉगो में अपने स्टार्टअप की झलक स्पष्ट दिखाई दे जो आपके व्यक्तित्व की छवी को उभार सके तथा जिस कार्य के लिए लॉगो बनाया है उसकी पहुच चारो और फैलाई जा सके यहाँ यह भी ध्यान देना जरुरी है की लॉगो बहुत ज्यादा प्रोफेशनल होना चाहिए जो दिखने में काफी ज्यादा आकर्षक होना चाहिए क्योकि लॉगो जितना ज्यादा अट्रैक्टिव होगा लोगो का ध्यान उतना ही आपकी और आकर्षित होगा.

fiverr :
एक ऐसी वेबसाइट जहाँ पर लॉगो बनाने से लेकर ग्राफिक डिजाइन, डिजिटल मार्केटिग, राइटिंग एंड ट्रांसलेशन, विडियों एनिमिनेशन, म्युजिक ऑडियों, प्रोग्रामिंग एंड टीच, बिजनेस, लाइफस्टाइल ऐसे विकल्प मौजुद है. जैसे ही आप मेन्युबार के ग्राफिक डिजाइन पर क्लिक करोगे तो आपको ग्राफिक डिजाइन से संबंधित सारे ऑप्शन मिल जायेगे जैसे लॉगो डिजाइन, गेम डिजाइन, वेब एंड एप डिजाइन फोटो एडिटर आदि अनेक विकल्प मिल जायेगे वो भी  एक दम जबरदस्त प्रोफेशनल अंदाज में साफ तौर पर कहा जाये तो ये वेबसाइड पर कई अन्य वेबसाइड काम अकेले कर सकती है इसके अलावा कही अन्य वेबसाइड पर जाने की जरुरत नही पड़ेगी.  https://www.fiverr.com/?source=top_nav

logomak : 
यदि आप अपना नया स्टार्टअप शुरु कारना चाहते है या ऑनलाइन बिजनेस शुरु करना चाहते है जिसके लिए यदि एक प्रोफेशनल लॉगो जो आपके बिजनेस व व्यक्तिगत छवी को प्रदर्शित कर सकें तो लॉगोमाक वेबसाइड एक ऐसी वेबसाइड जहॉ से आप एक आकर्षक लॉगो बना सकते है यहा पर आपको ढेर सारे कंलर मिलेगे अपनी पसंद के अनुसार कोई भी कंलर चुन सकते है और आपकों बस कुछ मिनटों में लॉगों बना कर दे  देगी. 

hatchful shopify :
यहा से बिना एक पैसा खर्च किये एक प्रोफेशनल लॉगों बना सकते है वो बस एक मिनट के अंदर आप यहा से जैसा चाहे वैसा लॉगो बना सकते है जैसे बिजनस, हेल्थ, ब्युटी, स्पोर्ट फुड, फाइंनेंशियल, जैसे अनेक आकर्षक डिजाइन में लॉगो बना सकते है.  https://hatchful.shopify.com/

ucraft :
इस वेबसाइट पर 220,000 तक मुफ्त आईकान उपलब्ध है यहाँ से आईकान का चुनाव कर अपना लॉगो डिजाईन कर सकते है साथ ही रंग, फोट्स साईज भी उपलब्ध है तथा इसे हाई रिज्याल्युशन में मुफ्त डाउनलोड सकते है. https://www.ucraft.com/


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यह वेबसाइड लॉगो तैयार करने का मुफ्त विकल्प देती है जिसकों आप 30 तरह की डिजाईनों में बदल सकते है साथ ही रंग, फोट्स आदि को भी कस्टमाईज कर सकते है यह वेबसाइड असीमित डाउनलोड का विकल्प नही देती है आप को हाई रिज्याल्युशन लॉगो डानउलोड के लिए पेय करना होगा.  https://www.designmantic.com/



designevo :
आप एक दृश्य आधारित है एक उत्कृष्ट लोगो डिजाइन कर सकते है जो पहचान स्थापित करने में मदद करेगा बल्कि कंपनी के स्पष्ट दृष्टिकोण को बतायेगा इस वेबसाइट पर अपने व्यवसायों, स्टाट्अप, व्यक्तिगत व्यवसाय या ऑनलाइन सोशल प्लेटफॉर्म हेतु उत्कृष्ट तरिके का लॉगो डिजाइन कर सकते है जो आपके ब्रांड को उच्चा रखने में मदद करता है. यहाँ पर आपको लॉगो से संबंधित सारे फिचर मिल जायेगे.  https://www.designevo.com/


designhill :
डिजाईन हिल कई ऑनलाइन सेवा प्रदान करता है यहाँ पर प्रोफेशनल लॉगो डिजाईन कर सकते है इसके अलावा यहाँ पर सोशल मिडिया हेतु कवर पेज डिजाईन कर सकते अपना क्युआर कोड डिजाईन कर सकते है. https://www.designhill.com/


squarespace :
यहाँ से फ्री लॉगो डिजाइन कर सकते यह वेबसाइट आपकी व्यवसाय हेतु जैसा आप चाहे वैसा अनुकुलित लॉगों बना सकते है यहाँ कम रिज्याल्युशन में मुफ्त लॉगो डानउलोड कर सकते है तथा हाई रिजॉल्युशन के लिए $ 10 खर्च कर लॉगो डाउनलोड कर सकते है. https://www.squarespace.com/


freelogodesign :
इस वेबसाइट पर से बहुत ही प्रोफेशनल तरिके का लॉगों डिजाइन कर सकते है आप अपने कंपनी का नाम दिजिए और लॉगो का रिजल्ट तुरंत सामने आ जायेगा आप यहाँ से लॉगो को अपने हिसाब से कटम्माईज कर सकते है.  https://www.freelogodesign.org/


zilliondesigns :
अपनी सोशल मिडिया हेतु अथवा ब्लॉक, वेबसाइट आदि के लिए लॉगो डिजाईन कर सकते यहाँ ग्राफिक्स भी बना सकते है ये पेड वेबसाइड है. https://www.zilliondesigns.com/







Friday, October 18, 2019

सीमा व सीमांत

सीमा व सीमांत

सीमा व सीमांत 

सीमाओं व सीमांत का सर्वप्रथम अध्ययन रेटजेल ने किया था. रेटजेल ने सीमाओं की तुलना किसी जीव की त्वचा से की अर्थात् किसी राज्य या प्रदेश की सुरक्षा सीमाएँ करती है.
सीमाओं का आनुवांशिक वर्गीकरण हॉर्टशोर्न ने किया था।
जॉन्श 1945 की पुस्तक "Boundary making A hand Book for Statesman" में सीमाओं के निर्धारण का अध्ययन प्रस्तुत किया गया.
सीमा Boundaries  शब्द अग्रेंजी के Bound  से बना है इसका अर्थ बाँधना या सीमित करना होता है.
सीमांत-
सीमांत शब्द का अर्थ एक निश्चित रेखा के लिए नही होता है, आर्थात् एक विशेष क्षेत्र के लिए प्रयुक्त किया जाता है इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे अग्र प्रदेश तटस्थ क्षेत्र मानव रक्षित क्षेत्र, सक्रांति प्रदेश आदि.
                              सीमा व सीमांत में अतंर 
     सीमा                   सीमांत
1. ये रेखात्मक प्रकृति की होती है-           1.  ये क्षेत्रीय प्रकृति का होता है.
2. ये कृत्रिम होती है.                            2.  ये प्राकृतिक होती है।
3. ये केंद्रमुखी (केन्द्र की और) बलों       3. सीमांत केन्द्र प्रसारित बलों का प्रतिनिधित्व करते  है
बलो का प्रतिनिधित्व करते  है
4. ये पड़ोसी देशों के साथ सपंर्क  सुत्र        4. ये पड़ोसी देशों क्षेत्रों को नजदीक लाते है।
बाधित करती है.
5. ये वर्तमान व्यवस्था होती है.            5. ये अतीत का परिचायक होती है।

सीमा और सीमांत का विकास

बर्घिम महोदय ने सन 1947 में सीमाओं के विकास के तीन सोपान अवस्था बताये.
आदिम
सक्रांति
आदर्श
प्रो. जॉन्श ने सीमा विकास की तीन अवस्था सोपान बताये.
1. निश्चय- सर्वप्रथम सीमांत प्रदेश में सीमा निश्चित करने के लिए अनेक भौगोलिक व सास्कृतिक तत्वों को ध्यान में रखा जाता है.
2. निर्धारण- ये सीमा की अत्यधिक महत्वपूर्ण अवस्था है क्योकि इसी को लेकर ही कालांतर में अनेक विवाद होते है।
3. अंकन- सीमा का वास्तविक रुप में अंकन करना अर्थात् सीमा को स्तम्भ लगाकर या कांटेदार तार लगाकर अंकन किया जाता है.

सीमाओं का वर्गीकरण- सीमाओं का वर्गीकरण मूल रुप से दों प्रकार से किया गया है.
1 रचना संबंधी वर्गीकरण
2 आनुवांशिक संबंधी वर्गीकरण

1 रचना संबंधी वर्गीकरण- रचनाओं के आधार पर सीमाओं को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है.
     (A) भू आकारिकी सीमा- इसके अंतर्गत पर्वत, पठार, नदी, झील, आदि के द्वारा निर्धारण किया जाता है.

  (a) पर्वतीय सीमा- अराकानयोमा पर्वत→ भारत़म्यांमार
  पिरेनीज पर्वत→ भारत़म्यांमार

  (b) नदी सीमा- जाम्बेजी नदी→ जिम्बावे + जाम्बीय
      रियोग्रांडे नदी→ USA मैक्सिको
जार्डन नदी→ ईजराइल + जॉर्डन
   (c) झील सीमा- कांन्सटैस झील→ जर्मनी + ऑस्ट्रीया + स्वीटजरलैण्ड
टीटीकाका झील→ पीरु + बोलवीया

(B)  ज्यामितिय सीमा-
  (a)  देशांतर के सहारे उत्तर से दक्षिण सीमा जैसे अलास्का व कनाडा (1410 डिग्री पश्चिमी देशांतर)
  (b)  अक्षांश के सहारे पूर्व से पश्चिम सीमा जैसे यु. एस. ए, कनाडा (490 डिग्री उत्तरी अक्षांश)
उत्तरी कोरिया - दक्षिण कोरिया 380 डिग्री उत्तरी अक्षांश
          (c) प्रजातीय भौगोलिक सीमा- जिन सीमाओं का निर्धारण जाति लिंग व धर्म के आधार पर होता है वो प्रजातीय सीमाओं के अतर्गगत आते है. जैसे भारत व पाकिस्तान ईजराइल व अरब

2 आनुवांशिक संबंधी वर्गीकरण-
(A) पूर्ववती सीमा- जिस सीमा का विकास सास्कृतिक वातारण के विकास के पहले हो चुका हो, इसे प्राथमिक सीमा भी कहते है.
(B) परवर्ती सीमा- इस सीमा का निर्धारण विकास सास्कृतिक वातावरण के विकास के पश्चात् होता है.
(C) अध्यारोपित सीमा- इसका विकास सास्कृतिक वातावरण के पश्चात् होता है लेकिन इसकी समानता परवर्ती सीमा के समान नही होती है, इसमें सीमाओं को जबरन अध्यारोपित किया जाता है, जैसे-उत्तरी कोरिया व दक्षिणी उत्तरी वियतनाम दक्षिणी वियतनाम
(D) रुस व जर्मनी

Tuesday, October 15, 2019

राजनिति भूगोल Political Geography

राजनिति भूगोल Political Geography

राजनिति भूगोल Political Geography

राजनीति भूगोल का विकास-

सन 1859 में चार्ल्स डार्विन ने प्रजातियों के उदभव (Evolution of Species) का सिद्धांत प्रतिपादित किया था.
हरबर्ट स्पेन्सर ने सामाजिक डार्विनवाद संकल्पना प्रस्तुत की.
उपरोक्त दोनो संकल्पनानाओं से प्रेरित होकर रेटजेल ने जैविक राज्य की सकल्पना प्रस्तुत की.रेटजेल ने ही 
लेबन्सरोम शरण स्थल की संकल्पना प्रस्तुत की 
भूगोल में राजनीतिक भूगोल की वास्तविक शुरुआत फ्रेडरिक रेटजेल (1844-1904)  के कार्यकाल में हुई. सन 1896 में रेटजेल ने एक पत्र राज्यों के क्षेत्रीय विकास के नियम- राजनैतिक भूगोल के वैज्ञानिक अध्ययन में योगदान लिखा
 1897 में रेटजेल की राजनैतिक भूगोल पुस्तक आई जिसका शीर्षक  दी लॉज ऑफ दी स्पॉशियल ग्रोथ ऑफ स्टेट्स था.
सन 1904 में मैकिन्डर ने इतिहास की भौगोलिक घुरी "Geographical Pivat of History" नामक शोध पत्र पस्तुत किया.
सन 1915 फेयर ग्रीव ने दबाव क्षेत्र संकल्पना क्रश जोन संकल्पना प्रस्तुत की.फेयर ग्रीव की पुस्तक  Geography and Word Power
सन 1919 में मैकिन्डर ने अपनी पुस्तक (Democratic ideal and Reality) में हृदय स्थल सिद्धांत प्रस्तुत किया था सन 1943 में मैकिन्डर ने मिडलैण्ड बेसिन की सकल्पना प्रस्तुत की थी.
सन 1944 में अमेरिकी विद्वान स्पाईक मैन ने रिमलैण्ड की संकल्पना प्रस्तुत की. स्पाईक मैन की पुस्तके- The geography of peace

मैकिन्डर का हृदय स्थल सिद्धांत- 

सन 1904 में मैकिन्डर ने The geographical Pivot of History में हृदय स्थल सिद्धांत प्रस्तुत किया इसके अनुसार यूरोप एशिया एंव अफ्रीका के आपस सहयोग से बना विशाल स्थल खंड विश्व द्वीप कहलाता है. मैकिन्डर के अनुसार पृथ्वी की सतह का 3/4 भाग स्थल है.

Note-संपूर्ण स्थल भाग के यह भाग पर विश्व द्वीप का फैलाव है तथा इस विश्व द्वीप में सम्पूर्ण विश्व की 7/8 भाग जनसंख्या (87.5 प्रतिशत) निवाश करती है.

 मैकिन्डर के हृदय स्थल सिद्धांत की त्रिस्तरीय व्यवस्था-
(1) धुरी प्रदेश-
इस प्रदेश के उत्तर में बर्फ से जमा आर्कटिक ूमहासागर पश्चिम में वोल्गा नदी व यूराल पर्वत दक्षिण में हिमालय तथा पूर्व में ठंडा साइबेरियन प्रदेश स्थित थे इस प्रदेश के लिए एक मात्र प्रवेश द्वार स्टेपीज घास के मैदान (कैस्पीय सागर झाल व यूराल पर्वत के मध्य) थे.

Note- सन 1919 में मैकिन्डर ने इस घुरी प्रदेश को हृदय कहा.

(2) आन्तरिक/उपान्तीय अर्द्ध चन्द्रकार प्रदेश-
 इसमें बाल्टिक सागर के पास पश्चिमी व पूर्वी यूरोप, मध्य यूरोप, पश्चिमी व दक्षिणी मरुस्थल (उत्तरी अफ्रीका) को शामिल किया गया.

(3) बाहय अर्द्धचन्द्राकार क्षेत्र-
 उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका अफ्रीका के सहारा मरुस्थल का दक्षिणी भाग ऑस्ट्रेलिया ग्रेट ब्रिटेन, जापान को शामिल किया गया.
मैकिन्डर का सामरिक सूत्र-
जो पूर्वी यूरोप पर शासन करेगा
वह हृदय स्थल पर राज करेगा
जो हृदय स्थल पर राज करेगा
वही विश्व पर राज करेगा
जो विश्व द्वीप पर राज करेगा
वह पुरे विश्व पर राज करेगा.

Note- सन 1919 में मैकिन्डर ने हृदय स्थल की नई नवीन परिभाषा दी तथा इसके अंतर्गत बाल्टिक सागर क्षेत्र, डेन्यूब नदी मध्य व निचली घाटी (एथेंस के पास) काला सागर क्षेत्र, आरबेनिया, तिब्बत व मंगोलिया आदि को शामिल किया.
 सन 1943 में मैकिन्डर नई मिडलैण्ड संकल्पना प्रस्तुत की।
मिडलैण्ड बेसिन उत्तरी अटंलाटिक महासागर क्षेत्र में परिवहन जाल वाली घाटी को मैकिन्डर ने मिडलैण्ड बेसिन कहा.
The Round Word and The Winning of Peace  नामक प्रपत्र में मैकिन्डर ने मिडलैण्ड नाम दिया.
मैकिन्डर ने हृदय स्थल के लिए मर्केटी प्रक्षेप का प्रयोग किया.



                  

Sunday, October 13, 2019

प्रमुख भौगोलिक विचारधाराएँ Important geographical thoughts

प्रमुख भौगोलिक विचारधाराएँ Important geographical thoughts

प्रमुख भौगोलिक विचारधाराएँ

(1) द्वैतवाद (Dualism) द्वैतवाद का अर्थ है, एक दूसरे की पुरकता को समझना तथा उनके अनन्योनय संबंधों का विश्लेषण जिनमें कभी प्रकृति श्रेष्ठ नजर आती है तो कभी मानव।

प्रमुख द्वैतवाद-

  • भौतिक भूगोल बनाम मानव भूगोल
  •  निश्चयवाद बनाम प्रादेशिक संभववाद
  • क्रमबद्ध भूगोल बनाम प्र्रादेशिक भूगोल
  •  सामान्य भूगोल बनाम विशिष्ट भूगोल

(2) निश्चयवाद का उदगम एवं विकास-

सर्वप्रथम नीग्रो रोमनकाल में उदय हुआ जिसमें अरस्तु मुख्य समर्थक थे तथा भूगोल के पिता हिकेटियस भूगोल शब्द के जनक इरेटोस्थनीज एवं हिप्पाकिस जैसे विद्वान रहे है। इनका नीतिवाद भौगोलिक नीतिवाद है जिसमें मानव को प्रकृति का दास माना गया है प्रकृति को सर्वोपरि तथा मानव की आर्थिक सास्कृतिक परिदृश्य को प्रकृति का उत्पादय माना है।
पूर्व आधुनिककाल में नीतिवाद का स्वरुप बदला जिसमें हम्बोल्ट एंव रिटर ने पारिस्थितिकी नीतिवाद को संकल्पित किया जिसमे मानव एंव प्रकृतिक को अन्नयोश्रित बताया तथा प्रकृति को मानव से अलग तथा प्रकृतिक से स्वतंत्र कोई स्वेच्छिक इकाई नही है।
चार्ल्स डार्विन वैज्ञानिक निश्चयवाद के समर्थक थे जिन्होने प्रत्यक्षवाद को समर्पित किया एंव ईन्द्रीयजन्य ज्ञान को वास्तविक ज्ञान माना है।
जर्मनी में सामाजिक डार्विनवाद की सकल्पना रेटजेल ने प्रतिपादित की जिसमें उन्होने कहा कि स्थान स्वय में एक जीवित ईकाई होती है जिसे लेबसरामे की संकल्पना कहा गया है।
रेटजेल ने अपनी पुस्तक एन्थ्रोपोज्योग्राफी के प्रथम खंड में जिस निश्चयवाद को समर्पित किया है, वह नवीन निश्चयवाद कहलाया है। रेटजेल की परम शिष्या चर्चिल सैप्तुल अमेरिका से 15 वर्षो तक रेटजेल के साथ रही तथा पंरतु जब रेटजेल ने द्वितीय खंड का सृजन किया, जो मानववादी दृष्टिकोण से ओत-प्रोत था इसके विरोध में सैप्पुल अमेरिका लौट गई एंव नीतिवाद के दृढ़ एवं कठोरतम शाखा पर्यावरणवाद अथवा पर्यावरणीय नीतिवाद की स्थापना की।
सैप्पुल ने पर्यावरणवाद के बारे में लिखा कि मानव प्रकृति के धुल का कण है। प्रकृति ने सभी जगह समस्याएँ दी है, पंरतु मॉ की तरह उसके सामाधान के बारे में भी बताया है जैसे- मनुष्य यदि तट पर पैदा हुआ है तो उसकी भुजा एंव वक्ष विकास सुदृढ़ किया ताकि नौकायन कर सके।
सैम्पुल के पर्यावरणवाद के प्रमुख समर्थक हंटिगंटन रहै है जिन्होने जलवायु एंव सभ्यता नामक पुस्तक प्रतिपादित की जिसमें उन्होने लिखा की जलवायु में परिवर्तन इतिहास में स्पंदन उत्पन्न करता है इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध के अंत तक पर्यावरणीय नीतिवाद प्रबल रहा पंरतु प्रौद्योगिकीकरण एंव वैज्ञानिक विकास ने संभववाद की धारा को सशक्त किया है।

(3) सम्भववाद (Possibilism)

इसका उदय प्लेटो की विचारधारा से मिलता है, तथा रेटजेल ने अपनी पुस्तक ऐन्थ्रोपोज्याग्राफी के खंड दूसरे में संभववाद के मतो को व्यक्त किया। जिसके बाद में फ्रास के विद्वान ब्लाश ने संभववादी सिद्धांत के रुप में प्रतिपादित किया।
संभववाद शब्द की रचना ला फ्रैब्रे ने की तथा कहा की  "कही भी आवश्यकताएँ नही है, परंतु सर्वत्र संभावनाएँ" है। 

(4) नव निश्चयवाद (Neo-Determinism)

ये विचारधारा ग्रिफिथ टेलर के द्वारा प्रतिपादित की गई इसे रुको और जाओ निश्चयवाद भी कहते है। ये एक मध्यमार्ग है, जो नीतिवाद एंव संभववाद के मध्य सामंजस्य स्थापित करता है इस सिद्धांत के अनुसार मानव सक्षमकर्ता है तथा अपने भविष्य का निर्धारण करता है पंरतु प्राकृतिक नियमों का व्युत्कृमण नही कर सकता है।
इन्होने मानव की तुलना ट्रेफीक नियन्त्रण से की जबकी यातायात को प्रकृति का प्रवाह बताया जिसे मनुष्य कुछ समय के लिए तो रोक सकता है पंरतु ट्रेफिक अपने मार्ग पर चलता है। इसी प्रकार नदियों पर बॉध बनाकर बिजली उत्पादन संभव है, परंतु नदियाँ समुद्र से उत्पन्न होकर पर्वतो के शिखर पर नही पहुॅच सकती है।

(5) प्रसंभवाद/संभाव्यवाद

ये सिद्धांत ओ. एच. के. स्पेट ने प्रतिपादित किया जिसमें बताया कि प्रकृति में चतुर्थतिक संभावनाए नही बल्कि संभावनाएं है। अर्थात् संभव भी है और नही भी, इन्होने संभववाद और नीतिवाद के बीच मध्यमार्ग निकालने का प्रयास किया तथा बताया की बिना मानव के पर्यावरण अर्थहीन सुक्ति है।


(6) प्रत्यक्षवाद- 

इस संकल्पना का उदय फ्रासीसी क्रांति के दौरान हुआ था इसके प्रतिपादक अगस्त कामटे थे इसमें परिघटनाओं का अध्ययन प्रत्यक्ष संकलन तथा आकड़ों के माध्यम से किया जाता है तथा जो आगमनात्मक विधि से प्राप्त हो वही वैज्ञानिक है।

(7) मात्रात्मक क्राति-

मात्रात्मक क्राति का अर्थ है भौगोलिक विषयों में गणितीय एंव साख्यिकीय विधियों का उपयोग कर मॉडल एंव सिद्धांत का निर्माण जिसमें इन विषयों में वतुनिष्ठता एंव वैज्ञानिकता का विकास किया जा सके। 
मात्रात्मक क्रांति के प्रेरणा शैफर्ड के क्रमबद्ध भूगोल के समर्थन से मिली।
मात्रात्मक क्राति में निम्न विधियों का प्रयोग होता है।
          गणितीय विधि
          साख्यिकीय विधि
          भौतिक विधि
          सइबर मेटिक्स- जिसमें तंत्र विश्लेषण एंव नियामक तंत्रों का अध्ययन किया जाता है।

मात्रात्मक क्रांति के चरण
    प्रथम चरण (1818 से 1915)- इस दौरान नव-शास्त्रीय अर्थशास्त्र पर आधारित मॉडल पर मॉडल बने जैसे-वॉन थ्यूनेन का मॉडल 1826, वेबर का औद्योगिक अवस्थिति सिद्धांत 1909 आदि

   द्वितीय चरण (1915-1945)- इस दौरान मुख्यत बस्ती भूगोल एंव आर्थिक भूगोल के क्षेत्र में मॉडल निर्माण में जैसे-प्राथमिक नगर सकल्पना कोटि आकार नियम.

   तृतीय चरण (1945-1976)- ये अदभूत काल है जिसमें सम्पूर्ण भूगोल में मॉडल एंव सिद्धांत का निर्माण प्रारम्भ किया जिन्हे 1955 मे बर्टन ने मात्रात्मक क्रांति की संज्ञा दी इस दौरान स्टाम्प ने कृषि भूगोल, पीटर हेगेट ने अवस्थितिकी विश्लेषण, चोरली एंव बैली ने तंत्र विश्लेषण मे मात्रात्मक क्रांति को आधार बनाया परंतु 1978 तक यह सिद्ध हो चुका था कि मानव भूगोल में बनने वाले सिद्धांत अथवा मॉडल आंशिक सत्यता को ही दर्शाते है एंव इस दौरान नील हार्वे ने लिखा की मात्रात्मक क्रांति अपनी समयावधि पूर्ण कर चूका है।

मात्रात्मक क्रांति के गुण-
    1. भूगोल में वैज्ञानिकता का प्रवेश 
    2. विषय वस्तु से वस्तुनिष्ठता की और
    3. भूगोल शोध के रुप में प्रतिष्ठित हुआ तथा एक नये अन्वेषण के रुप में प्रवेश हुआ।

मात्रात्मक क्रांति के दोष-
इसमें मानव एक रोबोट हो गया, अर्थात् मानव भावना शून्य हो गया जब की यह ये संभव नही है। मात्रात्मक क्रांति मे बनने वाले मॉडल एंव सिद्धांत आंशिक सत्यता को प्रदर्शित करते है, पूर्ण सत्यता को नही।

Friday, October 4, 2019

पुन र्जागरण काल Renaissance Period

 पुन र्जागरण काल Renaissance Period

 पुन र्जागरण काल Renaissance Period

तेरहवी से सत्रहवीं शताब्दी (1250 से 1750 ईस्वी) के काल को पुनर्जागरण काल माना जाता है। अंधकार युग के बाद भूगोल में पुनर्जागरण काल वह दौर आया जब भौगोलिक खोज, अन्वेषण फिर से प्रारम्भ हुये। 
पुनर्जागरण काल के पहले का दौर का समय जिसे अंधकार युग कहा गया, यह काल तीसरी से बारहवीं शताब्दी 300 से 1200 ईस्वी तक रहा। अंधकार युग में लगभग सभी प्रकार की खोजे, शोध कार्य बंद हो गये, इनका स्थान धार्मिक आडम्बरों ने ले लिया। इसाई धर्मावलंबी देशों, विशेषकर यूरोपीय देशों में इसका विशेष प्रभाव नजर आया, ईसाई पादरियों ने एक तरिके से धर्म की सत्ता स्थापित हो गई। इसको एक उदाहरण के द्वारा समझा जा सकता है। यदि कोई भी व्यक्ति किसी तरह का कोई भी अपराध कर दे तो वह चर्च में जाकर पादरी को पैसे देकर क्षमापत्र खरीद लेता है तो उसके सारे पाप धुल जायेगे। आदि ऐसे अनेक धार्मिक बुराईया समाज व राष्ट्र में चारों और व्याप्त हो गई। मुल रुप से अंधकार युग का मुल कारण रोमन साम्राज्य के पत्तन को माना जाता है 
पुनर्जागरण काल ही वह काल था जब भौगोलिक खोजे धीरे-धीरे फिर से प्रारम्भ हुई, नई महाद्वीपों, द्वीपों खोजे गये, व्यापारिक मार्गो का प्रसार हुआ एक महाद्वीप का दूसरे महाद्वीप से सम्पर्क स्थापित होने लगा, अनेक विद्वानों ने दूसरे महाद्वीपों में जाकर सम्पर्क स्थापित किया तथा ज्ञान का प्रसार हुआ आदि ऐसे अनेक कार्य प्रारम्भ हुये। अन्ततः समय के साथ अंधकार युग के बादल छटने लगे।
पुनर्जागरण काल के दौरान अनेक विद्वान व खोजी यात्री हुये जिन्होने नये महाद्वीपों की खोज की तथा अनेक यात्रावृत्तांतो लिखे गये। इनमें प्रमुख मार्कोपोलो, कोलंबस, वासको डी गामा आदि प्रमुख थे।

मार्कोपोलो- ये वेनिस शहर का रहने वाला था इसने अनेक क्षेत्रों की यात्रा की जिनमें सोवियत संघ, मंगोलिया, चीन, जिनमें कोरियाई क्षेत्र, पश्चिमी एवं पूर्वी एशिया शामिल है इसने अपनी सम्पूर्ण यात्रा वृत्तात का उल्लेख अपनी पुस्तक ट्रेव्लस ऑफ मार्कोपोलो में किया

किस्टोफर कोलम्बस- यह भी एक खोजी यात्री था जिसने भारत की खोज करने के लिए यूरोप की पश्चिम दिशा की और से समुद्री मार्ग से यात्रा प्रारम्भ की थी किंतु टॉलेमी की गणितीय अशुद्धियों के कारण यह 1492 में अमेरिका जा पहुॅचा जिसे कोलम्बस ने नई दुनिया नाम दिया।

वास्को-डी-गामा- यह पुर्तगाली निवासी था यह भी एक खोजी यात्री था यह केप ऑफ गुड होप होते हुये सन 1498 में भारत के पश्चिम में स्थित कालिकट बंदरगाह पर पहुॅचा यह प्रथम पुर्तगाली यात्री था जिसने भारत की खोज की।

फर्डिनेण्ड मेगेलन- यह गुर्तगाल का निवासी था इसने सम्पूर्ण संसार का चक्कर लगाया तथा नौसंचालन द्वारा भारत पहुॅचने वाला प्रथम यात्री था।

कैपटन कुक- यह अग्रेजी सेना में एक अधिकारी था जिसने आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड तथा अनेक द्वीपों की खोज का श्रेय प्राप्त है।

पुनर्जा्रगरण काल के दौरान अनेक आष्किरक हुये जिन्होने अनेक वैज्ञानिक आविष्कार किये जो मानव सभ्यता को अपने आप में अनुपम देन है।

कोपरनिकस-
 ये पौलेड के रहने वाले थे, कोपरनिकस ने बताया की पृथ्वी तथा अन्य सभी ग्रह सूर्य के चारों और चक्कर लगाते है। इन्होने सुर्य को ब्रह्ममंड के मध्य मे माना है।
केपलर- जर्मनी का रहने वाला था यह खगोलीय शास्त्री व गणितीय भूगोल का अच्छा ज्ञाता था। इन्होने बताया की ग्रहों का परिभ्रमण पथ गोलकार नही बल्कि अंडाकार है।
गोहम ने सर्वप्रथम 1492 में ग्लोब का निर्माण किया।
न्युटन ने 1686 में गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया।

                 पुन जार्गरण काल के प्रमुख भूगोलवेत्ता

(1) फिलिप क्लुवेरियस (Phillip Cluverius 1580-1622)

फिलिप क्लुवेरियस जर्मनी का रहने वाला था, जिसने भूगोल के विकास में अहम योगदान दिया का यह एक सैनिक होने के कारण अधिकतर सैनिक अभियानों में व्यस्त था तथा अपने अभियानों के द्वारा ही अनेक क्षेत्रों की यात्रा की इसमें यूरोप पश्चिमी एशिया व अनेक द्वीप समुहो की यात्रा की तथा प्रकृति के प्रति दृढ लगाव के कारण ही इसने अनेक भौगोलिक खोजे की जिसका उल्लेख इसने अपनी पुस्तक (An Introduction to Universal Geography)  में किया। यह पुस्तक लैटिन  भाषा में है जिसका अग्रेजी अनुवाद किया गया है।

(2) बर्नहार्ड वारेनियस (Bernhard Varenius 1622-1650)

जर्मनी का एक महान भूगोलवेता था इसने बहुत कम उम्र में ही अनेक विषयों जिनमें आयुर्विज्ञान, खगोल शास्त्र, भौतिक, गणित, इतिहास आदि विषयों में अध्ययन पुर्ण कर लिया था। वारेनियस की रुची मूल रुप से भूगोल विषय होने का प्रमाण इनकी रचनाओं में स्पष्ट देखने को मिलता है।
प्रमुख ग्रंथ
    1. सामान्य भूगोल (Geographia Generalis)
    2. जापान और स्याम (थाइलैण्ड) का भौगोलिक वर्णन (1650)
  • वारेनियस प्रथम भूगोलवेत्ता था जिसने क्रमबद्ध व प्रादेशिक भूगोल में द्वैतवाद की नीव रखी।
  • वारेनियस ने ही सर्वप्रथम भौतिक भूगोल व मानव भूगोल के मध्य अतंर स्पष्ट किया।
  • वारेनियस को क्रमबद्ध भूगोल का जनक माना जाता है।
  • वारेनियस प्रथम भूगोलवेत्ता था जिसने क्रमबद्ध व प्रादेशिक भूगोल में द्वैतवाद की नीव रखी।
  • वारेनियस ने ही सर्वपगथम भौतिम भूगोल व मानव भूगोल के मध्य अतंर स्पष्ट किया।
वारेनियस ने भूगोल को निम्न तीन भागों में विभक्त किया।

  • सापेक्षिक (Relative) इसमें पृथ्वी का अन्य ग्रहो से संबंध बताया है तथा पृथ्वी सूर्य चन्द्रमा की गतियों के बारे में वर्णन किया गया है।
  • निरपेक्ष या सार्वभौम (Absolute) इसमें पृथ्वी के आकार विस्तार तथा पृथ्वी के स्लरुपों का वर्णन किया गया है।
  • तुलनात्म (Comparative) इसमेंं पृथ्वी का सामान्य वर्णीकरण किया गया है, इसमें भौतिक ईकाइयों पर्वत पठार मैदान खाड़िया व नौसंचालन के सिद्धांतों का वर्णन किया गया है।


18वीं शताब्दी में भूगोल का विकास

18वी शताब्दी में भूगोल में वैज्ञानिकता का विकास होने लगा भूगोल का अध्ययन अब विस्तृत रुप में होने लगा पुनर्जागरण काल में जहा नये क्षेत्रों की खोज हुई तथा उनसे संबंधित वृत्तात लिखे वही 18वी शताब्दी में भूगोल में वैज्ञानिक तथ्यों का सामावेश होने लगा इसी काल में भूगोल का अन्य विज्ञानों का साथ संबंध स्थापित हुआ तथा भूगोल के एक नये स्वरुप का उदय होने लगा। इस क्रम कुछ ऐसे विद्वान हुए जिन्होने अपना अहम योगदान दिया।
फिलिप बुआचे (Buache1700-1773)- यह जर्मन भूगोलवेत्ता था इसने अपने भौगोलिक क्षेत्रों के वर्णन में प्राकृतिक सीमाओं का वर्णन किया, प्राकृतिक क्षेत्रों के रुप में जो की श्रृखलाबद्ध पर्वत श्रेणियों द्वारा अंकन होता है बुआचे ने अपने भौगोलिक कार्यो का उल्लेख अपने लेखों में किया जिसमें प्राकृतिक सीमाओं  नदि, बेसिन पर्वत पठार का उल्लेख किया बुआचे का मानना था प्राकृतिक सीमाओं का निर्धारण राजनीतिक सीमाओं के बजाय प्राकृतिक प्रदेशों द्वारा किया जाना चाहिए

बुश्चिंग (Anton Busching1724-1793) - यह एक जर्मन दार्शनिक व्यक्ति था इनका मूल अध्ययन क्षेत्र रुस रहने के कारण रुस के विभिन्न भौगोलिक प्रदेशों का अध्ययन किया तथा विभिन्न प्राकृतिक प्रदेशों में विभक्त किया इनके द्वारा लिखित पुस्तक (New Erdbeschreibung)

गट्टेरेर (Johann Christoph Gatterer 1727-1799)- गट्टेरेर ने प्राकृतिक प्राकृतिक प्रदेशों की संकल्पना का अनुसरण करते हुये पृथ्वी को अनेक प्राकृतिक प्रदेशों में बांटा इन्होने अपनी पुस्तक सक्षिप्त भूगोल की रचना में प्राकृतिक प्रदेशों का वर्णन किया।
होम्मेयर (Hommeyer) -इन्होने बताया की राजनीतिक ईकाईया परिवर्तनशील होती है अतः यह बदल सकती है क्योकि यह ऐतिहासिक घटनाओं के कारण ही उत्पन्न होती है वही प्राकृतिक प्रदेशों को बदला नही जा सकता अर्थात् अपरिवर्तनशील होते है। होम्मेयर ने प्राकृतिक प्रदेशों को क्रमशः विभक्त किया स्थान, इलाका तथा नदी बेसिन में विभक्त किया। इनके द्वारा लिखित प्रमुख ग्रंथ यूरोप का शुद्ध भूगोल जिसमें पृथ्वी के प्राकृतिक प्रदेशों को विभक्त कर उनका विवरण प्रस्तुत किया।
Note- शुद्ध भूगोल विचारधारा के प्रथम प्रतिपादक अथानासियस किस्चर थे।

ज्यूने- ज्यूने नदि बसिनों को प्राकृतिक ईकाई माना तथा राजनीतिक ईकाई को अस्वीकार कर दिया।

फॉर्स्टर बंधु
महान जर्मन भूगोलवेत्ता रीनहाल्ड फॉर्स्टर को प्रथम विधितंत्रीय (Methodological) भूगोलवेत्ता कहा जाता है

भूगोल में दार्शनिक विचारधारा

भूगोल में दार्शनिक विचारधारा का मूल क्षेत्र जर्मनी रहा उस समय स्पनोजा नामक विद्वान का दर्शन जर्मनी में काफी चर्चा में रहा जिनका दर्शन दकार्ते नामक विद्वान की निगमनात्मक पद्धति पर आधारित था।
इमेनुअल काण्ट - भूगोल की दार्शनिक विचारधारा के विकास में काण्ट का महत्पूर्ण योगदान है भूगोल में दार्शनिक विचारधारा को गढ़ने में इनका महत्वपूर्ण रहा। काण्ट दार्शनिक विचारक होते हुए भी इन्होने भौतिक भूगोल मानव भूगोल का अध्ययन किया तथा अध्यापन भी कराया इनकी तर्कशास्त्र के अंदर गहरी रुची थी यही है की इन्होने तार्किक ढंग से भौगोलिक ज्ञान को प्राप्त को प्राथमिकता दी। काण्ट ने भूगोल को वैज्ञानिक स्वरुप देने का प्रयास किया, इसके अलावा काण्ट ने भूगोल को इतिहास से भी प्राचीन माना इनका मानना है की भूगोल सभी कालों में रहा जबकि इतिहास तो मानव जाति के उदभव के साथ विकसीत हुआ है, काण्ट ने कहा निन्तर भूगोल है इतिहास कुछ भी नही है, परंतु काण्ट ने भौगोलिक कार्यो में इतिहास की महत्ता को भी स्वीकार किया तथ कहा कि बिना इतिहास के भूगोल कार्य अधूरा है।
काण्ट ने भूगोल को निम्न रुपों में विभक्त किया-
  • भौतिक भूगोल (Physical Geography)
  • गणितीय भूगोल (Mathematical Geography)
  • राजनीतिक भूगोल (Moral Geography)
  • व्यापारिक भूगोल (Political Geography)
  • धर्म या अध्यात्म भूगोल (Commercial or Mercantile Geography)


प्रमुख जर्मन भूगोलवेत्ता 

(1) रिचथोपन (Richthofen 1833-1905)
रिचथोपन के ग्रंथ-
    1. चीन का भूगोल
    2. चीन का मानचित्र
    3. आर्थिक एंव खनिज भूगोल
    4.स्थालाकृतिक विज्ञान
    5. प्रादेशिक भूगोल को कोरोलॉजी कहा।
सर्वप्रथम फियोर्ड तट तथा रिया तट के मध्य अंतर स्पष्ट किया।

(2) अल्फ्रेड हेटनर (Alfred Hetner 1859-1941)
प्रमुख पुस्तक
    1. भूगोल का विधि तंत्र
    2. यूरोप का प्रादेशिक भूगोल
    4 रुस का भूगोल

(3) अल्ब्रेच्ट पेंक (Walther Penck 1858-1945)
प्रमुख पुस्तक-
    1. हिमयुग में आल्पस
महान भू-आकृतिक वैज्ञानिक

(4) वाल्टर पेंक (Walther Penck 1888-1923)
डेविस के अपरदन चक्र की आलोचना
पेंक ने अपरदन चक्र की पॉच दशाएँ बताई।




Tuesday, October 1, 2019

भारत में भूगोल का विकास Development of Geography in India

भारत में भूगोल का विकास Development of Geography in India

भारत में भूगोल का विकास (Development of Geography in India)


भारत में अभी भी भूगोल का पूर्ण विकास नही हुआ, 18वी शताब्दी के अन्तिम दौर तक भूगोल विषय के बारे में बहुत कम जानकारियॉ उपलब्ध थी, तथा जो भी जानकारीया उपलब्ध होती थी उनका अध्ययन भारत की एकमात्र सस्थान सर्वे ऑफ इडिंया में किया जाता जिसकी स्थापना भौगोलिक कार्यो हेतु 1767 में की गई यह सस्थान उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित है।
19वी शताब्दी के आधे दौर के गुजर जाने बाद भी भारत में भूगोल के क्षेत्र कोई खास विकास नही हो पाया इसका प्रमुख कारण यह माना जाता है, भारत में भौगोलिक खोजों, अनवेषणों आदि का प्रयाप्त अभाव था तथा उच्च शिक्षण संस्थानों, विश्वविद्यालयों, स्कुलों ऐसे शिक्षको का अभाव था जिनका भूगोल विषय के ज्ञान का अभाव था। इस दौर तक भूगोल का अध्ययन केवल इतिहास राजनीति, समाजशास्त्र आदि विषयों के साथ भूगोल को पढ़ाया जाता है। कहने का मतलब यही यह की इस समय तक भूगोल को एक स्वतंत्र विषय के रुप में नही पढ़ाया जाता था।
भारत में भूगोल के अध्ययन के वास्तविक दौर की शुरुआत भारत की आजादी के बाद शुरु हुआ, जब आस्ट्रेलिया के एक भूगोलवेत्ता ओ. एच. स्पेट ने भारत और पाकिस्तान का सयुक्त रुप से भूगोल लिखा उनके द्वारा लिखित इस पुस्तक का नाम इंडिया पाकिस्तान है। हालाकि सर्वप्रथम भूगोल विषय का अध्ययन अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में 1931 में प्रारम्भ हुआ हो गया था।
भारत के प्रमुख भौगोलिक सस्थान निम्न है।

  • भारत में सर्वे ऑफ इंडिया की स्थापना 1767 में देहरादून  संस्थान में गई थी। इस संस्थान में भू-प्रपत्र (टोपोशीट, मानचित्रावली) बनाये जाते है।
  • सर्वप्रथम आस्ट्रेलियाई भूगोलवेत्ता स्पेट ने सन 1950 में भारत व पाकिस्तान इंडिया- पकिस्तान पुस्तक लिखी।राष्ट्रीय सुदूर सवेदन एजेन्सी  हैदराबाद में है।
Note- भारतीय विश्वविद्यालयों में भूगोल का अध्ययन सर्वप्रथम सन 1931 में अलीगढ़ विश्वविद्यालय में आरंभ हुआ था।

(1) अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय- इस विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम प्रोफेसर डॉ इबदुर्रहमान थे।

  • यहाँ 1934 से 2007 तक प्रोफेसर मोहम्मद शफी ने अपना अहम योगदान दिया।
  • 1956 में शफी ने लैण्ड यूटीलाइजेशन इन ईस्टर्न उत्तर प्रदेश नामक पुस्तक लिखी।
  • इस विश्वविद्यालय में 1956 में अंतराष्ट्रीय भौगोलिक संगोष्टी का आयोजन हुआ। (भारत की पहली भौगोलिक संगोष्ठी थी)
  • मो. शफी ने सर्वप्रथम कृषि भूगोल की स्थापना की थी।
  • शफी ने वॉन थ्यूनेन के सिद्धांत को भारत के संदर्भ में त्रुटिपूर्ण बताया।

         1.  प्रो मजफ्फर अली- इन्होने  पौराणिक भूगोल की नींव डाली (The Geography of puran)  इस पुस्तक का प्रकाशन 1966 में हुआ।

(2) कलकता विश्वविद्यालय-  
यहॉ एस, पी चटर्जी ने सर्वप्रथम अपना योगदान दिया।

(3) बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय-  यहाँ सर्वप्रथम 1947 में डॉ. एच.एल छिब्बर ने भूगोल विभाग की स्थापना की थी।
        1. एच. एल छिब्बर की पुस्तके
            1. जियोलॉजी ऑफ बर्मा
            2. द मिनरल्स रिसर्स ऑफ बर्मा
            3. फिजीकल बेसिन ऑफ ज्योग्राफी ऑफ इंडिया
            4. द फिजीयोग्राफी ऑफ ज्योग्राफी ऑफ इंडिया
            5. एडवांसड इकोनामीक ज्योग्राफीक ऑफ इंडिया पाकिस्तान

        2. डॉ. रामलोचन सिंह (1947-2001) इन्हे भारतीय नागरीक भूगोल का जनक कहा जाता है।रामलोचन              सिंह ने अन्तराष्ट्रीय भूगोल संघ में ग्रामीण बस्तियों में कमीशन की संघोष्टी में अध्यक्षता की थी।
       प्रमुख पुस्तक
       इंडिया ए रिजनल ज्योग्राफी
      1. भारत एवं प्रादेशिक भूगोल 1977 (भारतीय भूगोल का विश्वकोश) माना जाता है।

(3) पंजाब विश्वविद्यालय-  इसकी स्थापना सन 1944 में हुई थी ।
        प्रमुख प्रोफेसर
        आर सी चॉन्दना
एबी मुखर्जी
इस विश्वविद्यालय में जनसंख्या भूगोल के अध्ययन में ख्याति प्राप्त हुई थी।

(4) उस्मानियाँ विश्वविद्यालय (हैदराबाद)- में भूगोल की स्थापना 1955 में सैय्यद अहमद ने की ।

(5) राजस्थान विश्वविद्यालय- 
राजस्थान में भूगोल की स्थापना 1966 में हुई थी
प्रमुख प्रोफेसर- डॉ. इंद्रपाल, प्रोफेसर लक्ष्मी शुक्ला,  रामकुमार गुर्जर, बी.सी जाट

(6) जे एन यु (J.N.U)-
जे एन यु की स्थापना 1969 मे हुई भूगोल की स्थापना का श्रेय प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता प्रोफेसर मुनिसराज को जाता है।
मुनिसराज को आधुनिक भारतीय भूगोल का महत्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है।  भारत का एक मात्र भूगोलविद था जिसने पीएचडी  नही की लेकिन अनेको छात्रों को पीएचडी करवाई।

भारत की प्रमुख भौगोलिक परिषदें

स्ंसार की प्रथम भूगोल परिषद की स्थापना फ्रांस में की गई- पेरिस की भूगोल परिषद
(1) भारतीय राष्ट्रीय भूगोल परिषद वाराणसी (National Geographical Society of India NGSI)-
भारतीय राष्ट्रीय भूगोल परिषद वाराणसी की स्थापना हिन्दू विश्वविद्यालय के भूगोल के विभागाध्यक्ष प्रो0 एच. एल छिब्बर ने सन 1946 में की थी।

  • इस विश्वविद्यालय के प्रो0 रामलोचन सिंह की एक पत्रिका नेशनल ज्योग्रफीक जनरल प्रकाशीत होती है। त्रिमासिक पत्रिका 
  • 1966 में इस विश्वविद्यालय में ऑल इंडिया सेमीनार ऑफ एप्लाईटज्योग्राफी का आयोजन हुआ था।

(2) भारतीय भूगोलवेत्ताओं का राष्ट्रीय संघ(National Association of Geographers india NAGI)-
 भारतीय भूगोलवेत्ताओं का राष्ट्रीय संघकी स्थापना के प्रो0 मुनिसराज व प्रो गोशाल ने की थी। इसका सदस्य भारत का कोई भी भूगोलवेत्ता बन सकता है।

(4) बम्बई भूगोल परिषद मुंबई(Bombay Geographical Association Mumbai)-
125. इसकी स्थापना 1882 में रॉयल ज्यॉग्रफिकल सोसायटी लंदन के द्वारा भारत में एक साखा खोली गई ये भारत की सबसे प्रचीन व प्रथम भूगोल परिषद है।

(5) भारतीय भोगोलिक परिषद कोलकाता- 
इसकी स्थापना सन 1933 में ज्योग्राफीक्स सोसायटी के नाम से हुई तथा 2 जनवरी 1951 को इसका नाम भारतीय भौगोलिक परिषद कोलकाता कर दिया गया।

(6) अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भूगोल सोसायटी-
अलीगढ़ इसकी स्थापना सन 1946 में हुई थी।

(7) उत्तर भारत भूगोल परिषद गोरखरपुर-
स्थापना सन 1968 में हुई थी इस परिषद द्वारा उत्तरभारत भूगोल पत्रिका का प्रकाशन किया जाता है।

(8) भारतीय भूगोलवेत्ता परिषद नई दिल्ली-
 इसकी स्थापना 1955 में की गई थी ये परिषद भारतीय भूगोलवेत्ता नामक पत्रिका का प्रकाशन करती है।

(9) हैदराबाद भूगोलपरिषद- हैदराबाद-
इसकी स्थापना सन 1962 में चतुर्वेदी के द्वारा की गई थी इस परिषद के द्वारा द दक्कन ज्योग्राफर नामक भौगोलिक पत्रिका का प्रकाशन किया जाता है।


NATMO- National Atles and Thematic Mapping Organisation Kolkata  राष्ट्रीय मानचित्रावली एंव विषयक मानचित्रण संगठन कोलकाता की स्थापना 1956 में प्रो0 चटर्जी के द्वारा की गई थी। ये भारत सरकार का संगठन है। NATMO का उद्देश्य भारत का राष्ट्रीय एटलस तैयार करना होता है।
 1. सामाजिक भूगोल मुनिसरजा
2. आर्थिक भूगोल मो0 शफी
3. जनसंख्या व अधिवास भूगोल गुरुदेव सिंह गौशाल
4. नियोजन भूगोल देश पांडे
5. नगरीय भूगोल रामलोचन सिंह




link भौगोलिक विचारधाओं का विकास
link आधुनिक भूगोल का शास्त्रीय काल
link अरब भूगोलवेत्ता Arab Geographers
link फ्रांस के भूगोलवेत्ता french geographer